हज़रत कतबुल क़िताब मुजद्दिद-ए-दौरां
सय्यदना -ओ- मौलाना शाह फ़ज़ल-ए-रहमान
रहमतुह अल्लाह अलैहि
आप की विलादत बासआदत मुताबिक़ 1208 हिज्री को मल्लावां में हुई। नवाब सय्यद नूर-उल-हसन मजमूआ अलरसाइल में लिखते हैं कि आप के वालिद माजिद हज़रत शाह अहल-ए-अल्लाह हज़रत शाह अबदुर्रहमान लखनवी रहमतुह अल्लाह अलैहि के मुरीद थे और आप का नाम हज़रत शाह अबदुर्रहमान रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़ज़ल रहमान रखा।
आप के नाम मुबारक में अलिफ़(ا) और लाम (ل) नहीं है। उस की वजह ये हैकि इस से आप का सन विलादत बासआदत निकलता है। यानी तारीख़ी नाम है। हुरूफ़ अबजद के मुताबिक़ लफ़्ज़(فضل) फ़ज़ल के कल आदाद 910 होते हैं यानी फ(ف) के अदद 80 , ज़(ض) के अदद 800 और ल(ل) के अदद 30 होते हैं। इसी तरह लफ़्ज़ रहमान(رحمن) के कल आदाद 298 होते हैं यानी र(ر) के 200, ह्(ح) के 8, म(م) के 40 और नून(ن) के 50 अदद होते हैं। अब अगर 298 में 910 को जमा करें तो कल आदाद 1208 बनते हैं जो कि हज़रत फ़ज़ल रहमान गंज मुरादाबादी का सन्-ए- विलादत है।
मौलवी तजम्मुल हुसैन साहिब फ़ज़ल रहमानी में लिखते हैं कि आप मल्लावां में सड़क पर लड़कों के साथ कुछ खेल में मशग़ूल थे कि गाड़ी आई और इस का एक पहिया आप के जिस्म और सिरके ऊपर से गुज़र गया जिस से आप के कान का काफ़ी हिस्सा कट गया मगर जान बच गई।
बचपन में एक मर्तबा आप अपने वालिद के साथ मल्लावां से चले आप के वालिद के हाथ में एक पिंजरा था जिस में तूती था। रास्ते में आस पास का कण के दरख़्त ख़ासी तादाद में मौजूद थे। जैसे ही तोते ने का कण के ख़ोशे देखे तो टें टें करने लगा। आप के वालिद ने का कण के दरख़्त का एक ख़ोशा तोड़कर जानवर को पिंजरा में दे दिया, मौलाना फ़ज़ल रहमान रहमतुह अल्लाह अलैहि ने मना किया। आप के वालिद ने उस को ख़फ़ीफ़ समझ कर उस को नहीं माना और चले गए। जब आप के वालिद बीस पच्चीस क़दम चले गए तो देखा कि मौलाना फ़ज़ल रहमान रहमतुह अल्लाह अलैहि मेरे पीछे नहीं हैं। बल्कि वहीं खेत पर खड़े हैं। पुकारा कि आओ क्यों खड़े हो। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया कि जब मालिक खेत का आए गातो इस से माफ़ करा कियाओंगा कि ख़ोशा हमारे पिंजरा में है। आप के वालिद ने कमसिनी के सबब से नहीं छोड़ा और कहा कि लो हम नहीं जाते हैं,पिंजरा खोल कर ख़ोशा को फेंक दिया। तब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि वहां से तशरीफ़ ले गए
नवाब सय्यद नूर-उल-हसन इसरार मुहब्बत में लिखते हैं कि एक दफ़ा एक पीरज़ादा आप की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और आप को देख कर बेहोश होगया। थोड़ी देर बाद जब होश में आया तो हज़रत ने पूछा क्या बात थी कहने लगा कि मैंने आप के पास हज़रत मुहम्मद को देखा है।और आँहज़रत का जमाल देख कर बेहोश होगया था। हज़रत ने कहा कि बस एक झलक में ये हाल हो गया है
हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल रहमान गंज मुरादाबादी फ़रमाते हैं कि मुझे लड़कपन में आँहज़रत और सहाबा किराम की ज़यारत हुआ करती थी।
२२ रबी उलअव्वल १३२३हिज्री को आप दार फ़ानी से रुख़स्त होगए। आप का मज़ार शरीफ़ गंज मुरादाबाद में है जहां दूर दूर से लोग फ़ैज़ हासिल करने के लिए हाज़िर होते हैं।
हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल रहमान रहमतुह अल्लाह अलैहि से बेशुमार अलमावमशाइख़ ने हदीस पाक का दरस लिया और रुहानी तर्बीयत भी हासिल की।आप की बेशुमार करामात हैं जिन के लिए ये सफ़हात नाकाफ़ी हैं।